लोहे का सिना है ,
शेरोवाली चाल है जिसकी
वही सरदार हमारा।
जब जब उसका शब्द गुन्जा है,
तब तब एक एक जन एक बना है,
बनाया शिल्प जिसने भारत का
वही सरदार हमारा।
डरको भी जिससे डर लगता था,
डरपोक भी उनका नाम लेकर निडर होते थे,
वही सरदार हमारा।
उनकी शान मे शान है हमारी,
जिनकी पहचान मे पहचान,
टूटे टुकडो को जोडता गया
नयी पहचान देता गया।
सिखाता चला स्वाभीमान ,
जो जुके सरको भी उठाया है,
देशकी शानमे मरना अभिमान समजा।
वही सरदार को कोटी कोटी वंदन मनका।।
dedicate only sardar patel.....
jai sardar jai sardar
MANN http://mannpoemvoluem09.blogspot.com/
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